बिन चेहरे और बिन विभाग की निष्क्रिय सरकार!
शिवसेना ने अपने मुखपत्र सामना में फिर आज सरकार को घेरा है। 40 दिन बाद पालना हिला डोर किसके पास मंत्रिमंडल विस्तार हुए आज चौथा दिन है मंत्रियों के विभागों का बंटवारा क्यों अधर में लटका है इसको लेकर सरकार पर तंज कसा है।
शिंदे-फडणवीस सरकार के मंत्रिमंडल का पालना ४० दिनों बाद हिला तो सही लेकिन अब उसका विभाग बंटवारा लटक गया है। मंत्रिमंडल विस्तार हुए तीन दिन बीत गए हैं। देश का अमृत महोत्सवी स्वतंत्रता दिवस करीब आ गया है, लेकिन राज्य के मंत्रिमंडल का न तो विभाग बंटवारा हुआ है और न ही जिले-जिले के पालकमंत्री सुनिश्चित किए गए हैं। पहले ही मंत्रिमंडल विस्तार को ४० दिन लग गए, अब उसमें विभाग बंटवारे को लेकर काफी असमंजस की स्थिति है। चालीस दिनों बाद मंत्रिमंडल का पालना हिला लेकिन इस पालने की डोर किसके पास है, ऐसा सवाल पूछा गया था। लेकिन इस पालने की कई डोरियां हैं और वह अंदर-बाहर के कई लोगों के हाथ में हैं, ऐसा नजर आ रहा है। जो पालने में हैं वे अपने मनमाफिक विभाग के लिए और जिन्हें पालने में जगह नहीं मिली है, वे नाराजगी व्यक्त करने के लिए हाथ की डोरी को झटका दे रहे हैं।
शिंदे गुट को समर्थन देनेवाले निर्दलीय विधायक बच्चू कडू ने दो दिन पहले, ऐसा ही झटका दिया था। बच्चू कडू वरिष्ठ निर्दलीय विधायक हैं। इससे पहले की महाविकास आघाड़ी सरकार में भी वे मंत्री थे। लेकिन शिंदे गुट ने जब बगावत की तब शुरुआत से ही उनका साथ देने वाले निर्दलीय विधायकों में वे अग्रसर थे। इसलिए नई सरकार के पहले पालने में हमें भी जगह मिलेगी, ऐसी उनकी उम्मीद थी। लेकिन वैसा नहीं हुआ। जिससे वे नाराज हो गए। मेरी नाराजगी क्षणिक है, ऐसा खुलासा उन्होंने किया है। फिर भी बेहद 'कटु' शब्दों में उन्होंने वर्तमान सत्ताधारियों को 'डोज' पिलाई है। बच्चू कडू ने मुख्यमंत्री से मुलाकात की। उसके बाद पत्रकारों से बातचीत करते हुए, 'जो देर से आए उन्हें पहली पंगत में बिठाया और जो पहले गए उन्हें आखिरी कतार में बिठाया है', इन शब्दों में उन्होंने वर्तमान सरकार पर निशाना साधा। बाद में उन्होंने इस सरकार का सार्वजनिक 'नामकरण' भी कर डाला। 'धोखा देनेवालों का राज' ऐसा नाम उन्होंने इस सरकार को दिया।
'जो ज्यादा धोखा देगा, वह बड़ा नेता बनेगा और उसे ही मंत्री पद मिलेगा', इन शब्दों में बच्चू कडू ने शिंदे सरकार का 'कटु' सत्य फिर उजागर किया। यानी इसमें नया क्या है? शिंदे गुट क्या या उन्हें अपनी गोद में बिठाने वाली भाजपा क्या, दोनों का ही दूसरा नाम 'विश्वासघात' और धोखा है। वादा करना और बाद में मुकर जाना यह तो भाजपा की परंपरा है और उसका अनुभव २०१९ में महाराष्ट्र कर चुका है। इससे पहले भी २०१४ में आखिरी पलों में उसने विश्वासघात किया ही था। शिंदे गुट ने भी दूसरा क्या किया है? उनका मुखौटा हिंदुत्व वगैरह का हो फिर भी मूल चेहरा विश्वासघात और धोखेबाजी का ही है। लिहाजा इन दोनों द्वारा मिलकर बनाई गई सरकार 'धोखा देनेवालों' की ही है। बच्चू कडू के मंत्री पद का पालना हिला होता तो उन्हें इस 'धोखे' का साक्षात्कार कदाचित नहीं हुआ होता, लेकिन वैसा नहीं हुआ और शिंदे-फडणवीस सरकार का 'कटु' सत्य उनके मुख से बाहर आ गया।
इसका मतलब ये है कि ऐसे कई दुखी और 'सुप्त ज्वालामुखी' शिंदे-फडणवीस सरकार में हैं तथा उनका कब विस्फोट होगा, इसका कोई भरोसा नहीं है। इसके कारण ही मंत्रिमंडल का विस्तार होने के बाद अभी भी विभागों का बंटवारा नहीं हो सका है। यह असफलता ही है। मुख्य रूप से यह सरकार ऐसे कई सुप्त ज्वालामुखी के मुहाने पर बैठी है। उनमें से किसी-न-किसी सुप्त ज्वालामुखी का फटना, उसके झटके, लावा के चटके, इस सरकार को बीच-बीच में लगते ही रहेंगे। उसमें से पहला झटका सरकार समर्थक निर्दलीय विधायक बच्चू कडू ने दो दिन पहले दिया। इसके अलावा जिन मुद्दों के लिए हमने शिंदे गुट को समर्थन दिया है वे दरकिनार किए गए तो अलग विचार करेंगे।
ऐसा 'प्रहार' भी सरकार पर किया। तीन दिन पहले शिंदे-फडणवीस सरकार बिन मंत्रियों की थी। चालीस दिनों बाद जैसे-तैसे मंत्रिमंडल का पालना हिला। दोनों तरफ से 'नाक में दम भरनेवाले' कुल १८ मंत्रियों ने शपथ ली। लेकिन उसके तीन दिन बीत जाने के बाद भी विभाग बंटवारे का 'नामकरण' नहीं हो सका है। क्योंकि यह सरकार 'संधिसाधु' की है, जिन्हें मंत्रिमंडल में 'संधि' मिली वे 'साधु' बनने का ढोंग कर रहे हैं और मलाईदार विभागों से लेकर मनमाफिक बंगला मिले इसके लिए खींचतान कर रहे हैं। लिहाजा, बिन चेहरे और बिन विभाग की 'निष्क्रिय सरकार' सहन करने का समय राज्य की जनता पर आया है।